एक समय था की जब मूली ,मक्का और इत्र जौनपुर जिले की पहचान हुआ करते थे लेकिन इस जमाने को न जाने कैसी नज़र लगी कि जौपुरी मूली , मक्का और इत्र अब यहाँ के लिए बीते जमाने की बात हो गयी है । शार्की काल में शिक्षा की राज धानी रहे जौनपुर में अभी कोई दो दसक पहले तक मूली की पैदावार काफी अच्छी होती थी यहाँ की मूली छह से सात फीट लंबी व ढाई फीट मोटी होती थी। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण न सिर्फ इसका आकार घटा बल्कि इसकी मिठास भी कम होती गयी। मूली की महत्वपूर्ण प्रजातियों में पूसा रश्मि, जापानी सफेद, पूसा चेतकी, पूसा हिमानी, पूसा देशी व जौनपुरी नेवार यहाँ की प्रमुख प्रजातिया रही है । जिले के चितरसारी, हरखपुर, खुरचनपुर, प्रेमराजपुर, बोदकरपुर सहित लगभग जिले के सभी हिस्सों में जौनपुरी मूली की खेती की जाती थी। किसान खेतों से हल की तरह कंधे पर मूली लेकर घर आते थे।लेकिन अब वे बाते महज कहानी बनकर रह गयी है । जलवायु परिवर्तन के कारण इसका अस्तित्व खतरे में गया है । वर्तमान में इसकी लंबाई घटकर तीन से चार फीट और मोटाई लगभग एक फीट हो गयी है। जिले की इस पहचान को बचाने के लिए प्रसिद्ध डीएनए वैज्ञानिक डा।लालजी सिंह इस पर शोध कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पहले इन गांवों में हुक्के वाली तंबाकू की खेती होती थी। तंबाकू की फसल काटने के बाद उसी खेत में किसान मूली की बुवाई करते थे । उस समय गोबर की खाद भरपूर मात्रा में डाली जाती थी। इससे मिंट्टी में जीवान्स की मात्रा अधिक होने के कारण मिंट्टी भुरभुरी व पोली होती थी परंतु तम्बाकू की खेती धीरे-धीरे कम हो गयी। वर्तमान में कल्टीवेटर से खेत की बार-बार एक ही सतह पर जुताई करने के कारण मिंट्टी में एक सख्त लेयर बन गयी है। मिंट्टी कड़ी होने के कारण मूली की लम्बाई और मोटाई कम हो गयी है। भूमि में जीवांश की मात्रा ०.२ ही रह गयी है जबकि स्वस्थ मिंट्टी में कार्बन की मात्रा 0.8 होनी चाहिए। खेतों में अधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भी आकार और उत्पादन प्रभावित हुआ है।
3 टिप्पणियाँ:
इस जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
यह तो अफ़सोस की बात है
nice
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