वैसे तो पूर्वांचल राज्य के गठन की मांग काफी लम्बे समय से चली आरही है लेकिन बीच में यह आन्दोलन कमजोर पड़ गया था । लेकिन इधर तेलंगाना की बहस छिड़ते ही इस बुझते आन्दोलन को जैसे नई ऊर्जा मिल गयी है । मुख्यमंत्री मायावती ने भी जोर सोर से छिड़ी इस बहस की आग में तपते तवे पर राजनीति की रोटी सेंकने में कोई कोर कसार बाकी नहीं रखी और उन्हों ने केंद्र सरकार को आनन् फानन में प्रस्ताव भी भेज दिया । अब सवाल यह उठता है की पूर्वांचल राज्य के गठन की वकालत करने वाले लोग आखिर किस विकास का सपना देख रहे है ? क्या पूर्वांचल या फिर पूरे उत्तर प्रदेश की दुर्दशा का कारण यही है की इसकी गिनती रकबे की दृष्टी से बड़े राज्यों में होती है ?
किसी राज्य की दुर्दशा इस बात पर निर्भर है कि उसे चलाने वालों का दिमाग़ कितना छोटा है, न कि राज्य कितना बड़ा है। जरा सोचिए अलग राज्य बन जाने के बाद ' क्या गरीबो के लिए दो जून की रोटी का बंदोबस्त होजाएगा ? इन सवालों के जवाब आम जनता के पास है लेकिन चिंता की बात यह है कि अलग राज्य के गठन की मांग करने वालो की भीड़ में आम जनता नहीं दिख रही है । इस भीड़ में तो सिर्फ वे लोग दिख रहे है जो विधायक,मंत्री या मुख्यमंत्री बनने के सपने पाल रखे है । पूर्वांचल राज्य के गठन की वकालत करने की नज़र में छोटे राज्य बनने के कई फ़ायदे हैं, मसलन अधिक लोगों को मंत्री बनने का मौक़ा मिलता है, अधिक अफ़सरों को नए कैडर में ऊँचे रैंक मिलते हैं, सड़क पर लाल बत्ती वाली गाड़ियाँ दिखती हैं जिससे शहर का रुतबा बढ़ता है. नई-नई योजनाओं के लिए पैसे आते हैं,
पड़ोसी राज्यों से ठेकेदार आते हैं, नई कारों के शोरूम खुलते हैं, होटल-रेस्तराँ-बार, सबका धंधा फलता-फूलता है.छोटे राज्य की अपनी विधानसभा भी होती है, छोटे राज्य में प्रतिभा पर रोक नहीं होती, निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री तक बन सकते हैं, राजनीतिक कौशल दिखाने के अवसर बढ़ते हैं, अगर दो-तीन 'योग्य' विधायक हों तो वे सरकार गिरा सकते हैं या बना सकते हैं. एक रिटायर हो रहे नेता के लिए गर्वनरी का विकल्प भी उपलब्ध होता है. झारखंड के मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा इस बात के ताज़ा उदाहरण है । मेरा मतलब कि अगर आप छोटे राज्य का एकेडेमिक आधार पर समर्थन करते हैं तो कोई एतराज़ की बात नहीं है, अगर आप उसे करियर ऑप्शन के तौर पर देख रहे हैं तो आपका भविष्य उज्ज्वल हो सकता है.लेकिन छोटे राज्य के सहारे अगर गरीबी दूर करने ,विकास की गंगा बहाने की सोच रहे है तो बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से टूट कर अलग हुए झारखंड ,छत्तीस गढ़ और उत्तरा खंड की आम आवाम की राय लेनी चाहिए ।
9 टिप्पणियाँ:
स्वागतम -अच्छा लिखा लिखा है आनंद ! अब नियमित बनें !
आपका हार्दिक स्वागत है आनंद जी. बहुत ही बेहतरीन लिखा है, और आगे भी आपके आलेख नियमित पढने को मिलते रहेंगे. यही उम्मीद है. हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
स्वागत है ब्लाग की दुनिया में
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें
आप ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली भाई
abhyaspoorwak likha hua aalekh hai..
स्वागत है.
जरुरी मुद्दे पर लिखने के लिए बधाई. आपका ब्लॉगजगत में स्वागत है
- सुलभ
Bada spasht aur sahi likha hai..swagat hai!
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