Friday, March 26, 2010

कैसी आजादी? तहसील की जेलो मे किसानो को दी जाती हैं यातनायें

एक छोटी सी कोठरी,उस कोठरी में सीलन और बदबू का साम्राज्य,छ्तो पर लटकते जाले और चमगादड़ । तहसील की ये जेलें उन किसानो के लिए हैं जो अपना कर्ज अदा नही कर पाते । करीब डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेजो द्वारा किसानो के उत्पीड़न के लिए बनाए गये कानून के तहत आज भी किसानो को यातनायें दी जाती हैं । उत्तर प्रदेश मे जिन्दा इस कानून के कारण ही लाखो किसान इन काल कोठरियों मे कैद हो चुके हैं और अब भी बन्द किए जाते हैं । तहसील की ये जेलें अब उन बड़े बैंको के लिए कर्ज वसूली का हथियार है जिनका कर्ज किसान नही चुका पाते । आप को यकीन न हो तो प्रदेश की किसी भी तहसील की जेल मे इस सतही हकीकत से रूबरू हो सकते है । खास कर इन दिनो तो वित्तीय वर्ष की समाप्ती तक वसूली लक्ष्य को पूरा करने के लिए छोटे बकायेदारो को ढूढ़ ढूढ़ के इन तहसील की जेलो मे ठूसा जा रहा है ।
दरअसल ब्रिटिश हूकूमत ने वर्ष १९०१ में इंडियन रेवेन्यू रिकवरी एक्ट बनाया था । इस कनून में कर्ज वसूली के लिए किसानो के उत्पीड़न के प्रावधान हैं । आजादी के बाद यूपी जमींदारी विनास तथा भूमि ब्यवस्था अधिनियम १९५६ बनाया गया । इस कानून मे किसानो से कर्ज वसूली के लिए वही ब्यवस्थाएं हैं जो अंग्रेजो ने बनायी थी । बकाय वसूली के लिए किसानो की १४ दिनो की जेल होसकती है और उसकी सम्पत्ति कुर्क की जासकती है । इस कानून मे यह भी ब्यवस्था है कि बकाया चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो वसूली न होने पर किसानो को जेल भेज दिया जाय । इसका नतीजा यह है कि लाख और करोड़ रूपये के बकायेदार तो भयमुक्त हो कर घूम रहे है किन्तु उन्हे किसी को टोकने की भी हिम्मत नही होती जबकि छोटे बकायेदार दिन रात अप्ना खून पसीना एक कर देश भर का पेट भरने का काम करते है उनका तमाम तरह से उत्पीड़न किया जाता है । तहसील की इन जेलो में बंदियों को खाना पानी भी देने की ब्यवस्था नही होती । खाने पीने का इंतेजाम उन्हे अपने घर से करना होता है । यह सजा पाने के पीछे उनका कसूर बस इतना होता है कि वे अपने कृषि विकास के लिए बैंक से कर्ज लेते है और अपेक्षित लाभ न होने से वे कर्ज अदा नही कर पाते । इस के पीछे भी उन पर कहीं प्रकृति की मार होती है तो कही बैंक अफ़सरो की कमीशन खोरी जिसके करण वे कर्ज से उबर नही पाते और सरकार की यातनायें झेलने को विवस होते हैं । इस कानून को खत्म करने के लिए पूर्व मे कुछ सामाजिक संगठनो ने आन्दोलन भी किया था किन्तु अब इसके बिरोध मे आवाज भी नही उठती । देश के कई रज्यों की सरकारो ने तो इस काले कनून को समाप्त कर दिया है लेकिन उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड और पंजाब के किसानो को अभी भी इस काले कानून से छुटकारा नही मिल सका है । अब आप ही बताइये कि देश की रीढ़ कहे जने वाले किसान किस हद तक आजादी महसूस कर सकते है ?