Friday, February 5, 2010

तो मुंबई में अब एक टैक्सी चालक भी नहीं बन सकता ?

अभी पिछले महीने जनवरी में मै देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में था | यहाँ से तो सिर्फ १० दिन के ही सफ़र पर निकला था पर वहा कुछ मित्रो के आग्रह पर सूरत, दमन , सिलवासा और ददरानगर हवेली की सैर कर वापस मुंबई होकर घर लौटने में पूरे एक माह का समय बीत गया | मुंबई बोले तो आप जानते ही है , कहा जता है कि यह ऐसा शहर है जो कभी सोता ही नहीं है | देश के तमाम हिस्सों में बसे घरो के चूल्हे मुंबई की बदौलत ही जलते है, बिभिन्न रंग रूपों को समेटे यह महानगर न जाने कितने परिवारों की आजीविका का केंद्र बन गया है पर अफ़सोस की बात यह है कि यहाँ के कुछ बासिन्दे (मूल नहीं) इस महानगर को सिर्फ और सिर्फ अपना समझ बैठे है | उनकी ख़ास चिढ उत्तर भारतीयों से है | जी हाँ मै बात कर रहा हूँ शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे व अब उन्ही के नक्से कदम पर चल रहे उनके भतीजे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे की | इनके पूर्वज भी इंदौर से जाकर वहा बस गए थे | यह समझना थोरा अटपटा लगता है कि जिन लोगो के कठिन परिश्रम से वहा के कल कर खाने चलते है और यातायात के संसाधन सुलभ है उन्ही से उनकी चिढ क्यों है ? शायद वे इस बात को पचा नहीं पते कि उत्तर भारत के किसी कोने से रोजी रोटी की तलास में खाली हाथ मुंबई जाने वाला बन्दा वडापाव खाकर दिन गुजार देता है और फुटपाथ पर सो कर रात बिता देता है लेकिन वही बन्दा एक दिन आटोरिक्शा या टैक्सी का ड्राइवर बनाता है और अपनी दिन रात की कमाई की बदौलत एक दिन टैक्सी का मालिक भी बनजाता है |

तक्नीकी या फिर किसी ब्यवसायिक तालीम के अभाव में उत्तर भारत से मुंबई जाने वाले बेरोजगार नौजवानों के लिए टैक्सी चालाक बनाना एक मुफीद रास्ता है लेकिन अब इसपर ठाकरे परिवार के अलावा महारास्ट्र सरकार की भी नज़र लग गयी है | अब उन राज्यों के लोग जो मुंबई में टैक्सी चलाने की ख़्वाहिश रखते हैं, उन्हें राज्य सरकार परमिट नहीं जारी करेगी. कारण साफ़ है मराठी भाषा की जानकारी और पिछले 15 सालों से राज्य के निवासी होने की शर्त.| सरकार के इस फरमान से तमाम टैक्सी चालको में मायूसी छा गयी है | मै बताऊ आप को कि पता नहीं क्या संयोग है कि पिछले पांच सालो से प्रत्येक साल मेरा मुंबई का एक सफ़रजरूर होजाता है | मुझे गुलाबी शहर जयपुर की भी यात्रा करनी हुई तो भी मै मुंबई होकर ही गया | वहा मेरे जीजा , दीदी और कई सगे संबंधी रहते है | मुझे ऐसा महसूस होता है यह शहर मेरा अपना शहर है. यहाँ की कई चीज़ें मुझे काफ़ी अच्छी लगती हैं, जिनमें से एक यहाँ की काली-पीली टैक्सियाँ भी हैं. यह टैक्सियाँ मुंबई की ख़ास पहचान में से एक है. मैं इन टैक्सी चालकों को भी बहुत पसंद करता हूँ | अपने इस यात्रा की एक कहानी आप को बताऊ मै अपने एक मित्र श्री राज यादव से मिलाने इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर गया था यहबात अभी ३० जनवरी की है | राज यादव इंडियन एक्सप्रेस में एडिटोरिअल विभाग में एक सम्मानित पद पर है | दफ्तर में काफी देर तक उनसे यहाँ वहा की बाते हुई उनके साथ साम को नास्ते के बाद मै बिदा लेलिया उनके पद और प्रतिष्ठा के मुताबिक़ मेरी हैसियत कुछ नहीं है फिर भी वह पूरे सम्मान के साथ दफ्तर के बहार तक आये | मुंबई के क्रीम प्लेस नरीमन पॉइंट में इस्थित २४ मंजिला की इस इंडियन एक्सप्रेस की बिल्डिंग से मै कुछ ही दूर गया था कि मेरे सेल फोन पर राज का फोन आया कि वापस आजाओ मै वापस गया तो पता चला वह मुझे कुछ गिफ्ट देना भूल गए थे मै उन्हें धन्यवाद देकर वापस हुआ तो चर्चगेट के लिए एक टैक्सी में स्वर होगया आगे सिग्नल पर टैक्सी खड़ी हुई तो चालाक से बाते होने लगी वह मेरे ही जिले के मडियाहू के राम अकबाल मौर्या थे | मैंने उनसे सरकार के इस हालिया फरमान पर चर्चा शुरू की तो उनकी पीड़ा सामने आयी उन्होंने कहा कि अगर सरकार का यह फरमान लागू हो गया तो मुझे और मेरे बेटे को भी कोई दूसरा रोजी रोजियार तलासना होगा | इसके बाद तो मैं इस सोच में डूब गया कि मुंबई में अब एक टैक्सी चालक भी नहीं बन सकता.लेकिन सवाल यह उठता है कि इन नियमों की ज़रूरत पड़ी ही क्यों?
यहाँ आम धारणा है कि यह एक राजनीतिक चाल है. ज़रा इस ख़बर पर ग़ौर कीजिए. 18 जनवरी को महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने यह एलान किया कि वो महाराष्ट्र में रहने वाले सभी परिवारों को चिठ्ठी भेजेंगे, जिसमें वो उनसे आम जीवन में मराठी भाषा का प्रयोग करने की अपील करेंगे. इस चिट्ठी को उनके कार्यकर्ता घर-घर जाकर पहुंचाएंगे. यह काम मराठी भाषा दिवस यानी 27 फ़रवरी को किया जाएगा .
यह सभी समझते हैं कि सरकार ने राज ठाकरे के इस एलान के दो दिनों बाद परमिट वाले नए नियमों का एलान क्यों किया ?
यह एक ऐसा हथियार है जिससे कांग्रेस पार्टी राज ठाकरे और शिव सेना के क़िलों में सेंध लगा सकती है. जानकारों की माने तो एक मंत्री ने पार्टी को यही सलाह दी कि राज ठाकरे को मात देने के लिए उसकी ही चाल चली जाए| अब तक राज ठाकरे मराठी भाषा के पक्ष में और हिंदी के ख़िलाफ़ जिहाद करते आए हैं अब कांग्रेस भी मैदान में कूद गई है लेकिन कभी-कभी ज़्यादा चालाकी भी अच्छी नहीं होती, जैसा कि इस मामले में हुआ, अब मुख्यमंत्री सफ़ाई दे रहे हैं कि परमिट के लिए स्थानीय भाषा का जानना ज़रूरी है और मराठी की तरह हिंदी और गुजराती भी मुंबई की स्थानीय भाषा है |

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