Friday, January 1, 2010

काहे का हैप्पी और काहे का न्यू ईयर.....!!

नव वर्ष की आगवानी कितने धूम धाम से हुई यह कोई बताने की बात नहीं रही । हमदुनिया की बात नहीं करे गे अपने देश में ही देखे लाखो - करोडो के पटाखे ,एस एम् एस , ग्रीटिंग और नजाने क्या - क्या खुसी के इज़हार के लिए पानी की तरह बहा दिए गए ।लेकिन नए साल की आगवानी पूरे जोशो खरोस और अपनी खुसी के इज़हार
के लिए पैसे उड़ाने वाले लोग क्या उन देशवासियो के बारे में भी सोचते है जिनके पास दो जून का चूल्हा भी जलानेका इन्तेजाम नहीं है । यकीन मानिए रात जब मै टी वी पर नव वर्ष के कार्यक्रम देख रहा था तो विभिन्न महानगरोमें वर्ष २००९ की विदाई तथा २०१० की आगवानी की खुशी में आतिश बाज़ी , नाच तमासो का आयोजन देख मेरे मन मस्तिस्क में बरबस ही उन गरीब बे सहारा और मज़लूमों की तस्वीर उभर आई जिनका परिवार दो वक्त की रोटीका भी मोहताज़ है । और शायद यही सोच कर मै अपने उन सुभेछुओ को रिप्लाई भी नहीं कर सका जिनके शुभकामना सन्देश मेरे मोबाइल पर आ रहे थे ।

सुबह जब सो कर उठा तो देखा घर के बच्चे सबके बिस्तर पर ही जा जा कर हैप्पी न्यू इयर बोल रहेथे
बच्चो में जैसे एक दूसरे को सबसे पहले विश करने की होड़ लगी थी। ठंढ अधिक थी बहार के सारे दृश्य कोहरे कीधुंध में ढ्के थे । मै गाव की तरफ निकल गया । दिहाड़ी मजदूरी करके खुद और तीन बच्चो का पेट पालने वालीकलावती अपनी झोपडी में आग जला कर ताप रही थी । मै उनका हाल पूछ रहा था तभी पाचवी में पढ़ने वाला
बालक सूरज दौडते हुए आया और बोला काकी हैप्पी न्यू ईयर उसका यह बोलना था कि काकी बोल पडी काहे का हैप्पी और काहे का न्यू ईयर बेटा ? सूरज बोला काकी जानती नही आज से नया साल लग गया
। काकी बोली बेटा हमहनी गरीब गुरबन क खातिर नया अऊर पुरान साल नाही होतै जब हाड मास पेरबै तबई साझी के चूल्हा जली नाही त भूखै बितावै क परी .... । उन दोनो की वार्ता मै सुने जा रहा था और रात मे टी वी परआतिश बाजी नज़ारे याद होते जा रहे थे । मै बगैर कुछ कहे उलटे पाव घर आगया और देर तक कलावती तथा उनजैसे लाचार और बेबस परिवारो के बारे मे ही सोचता रहा ।

1 टिप्पणियाँ:

मनोज कुमार said...

आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।