Thursday, December 24, 2009

तब उनके पास रोने के सिवा कुछ नही बचा था

दो दोस्त थे , दोनो ही मुसीबत के मारे थे । एक बार दोनो एक साथ घर से निकले और आपस मे बाते करते सुख और सम्रिद्धि की तलास मे निकल पडे । दोनो ने यह ठान लिया था कि अब तो ढेर सारी दौलत कमा कर ही घर लौटे गे । दोनो चल्ते जा रहे थे और तमाम आदर्श तथा अध्यात्म की बाते भी बतियाते चल रहे थे । एक ने कहा देख भाई मुझे तो बाबा जी की बाते ही सही लगती है ।दूसरे ने पूछा ओ क्या? पहले ने कहा वह कहते है कि समय से पहले और भग्य से अधिक नही मिलने वाला है । चाहे कित्ती भी नाक रगड ले ।
दूसरे दोस्त को ए बात नही जची उसने कहा तो फ़िर क्यो मेरे साथ चला आया ? बातो के साथ साथ रास्ते भी कट्ते जा रहे थे तभी दोनो एक ऐसी जगह पहुच गये जहा रस्ता बहुत पथरीला था । वहा एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था कि इन पत्थरो मे से जितना उठा सको उठा लो हा यह जान लो कि जो उठाए गा वह भी रोये गा और जो नही उठाये गा वह भी रोयेगा पर ध्यान ए भी रहे की यहा से एक कदम भी किसी ने पीछे हटाया तो वह यही का यही रह जाए गा वापस लौट कर घर नही जा पाये गा । दोनो दोस्त बडे चक्कर मे पड गाये एक ने कुछ कन्कड उठा कर रख लिए जब की दुसरे ने वह भी मुनासिब नही समझा । उन बडे- बडॆ पत्थरो के बीच से होते हुए जब वे कठिन डगर को पार करते बाहर निकले तो वहा भी एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था पीछे पत्थर की सक्ल मे पडी वस्तु हीरा है अगर आप उनमे से कुछ लाए हो तो यहा उसे बेच कर पैसे ले सकते हो । अब दोनो के पास रोने के सिवा कुछ नही बचा था । एक सिर पीट- पीट कर रो रहा है कि मै पत्थर का बडा टुकडा क्यो नही उठाया तो दूसरा छाती पीट- पीट कर रोये जा रहा और कहा कि मेरे पास तो चार चार जेब थी मै इनमे कन्कड ही क्यो नही रख लिया ।

1 टिप्पणियाँ:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर कहानी सुनाई आपने. जरुर ये बाबा समीरानंद ही रहे होंगे.

रामराम.